द्विजेन्द्र "द्विज"

द्विजेन्द्र "द्विज" एक सुपरिचित ग़ज़लकार हैं और इसके साथ-साथ उन्हें प्रख्यात साहित्यकार श्री सागर "पालमपुरी" के सुपुत्र होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। "द्विज" को ग़ज़ल लिखने की जो समझ हासिल है, उसी समझ के कारण "द्विज" की गज़लें देश और विदेश में सराही जाने लगी है। "द्विज" का एक ग़ज़ल संग्रह संग्रह "जन-गण-मन" भी प्रकाशित हुआ है जिसे साहित्य प्रेमियों ने हाथों-हाथ लिया है। उनके इसी ग़ज़ल संग्रह ने "द्विज" को न केवल चर्चा में लाया बल्कि एक तिलमिलाहट पैदा कर दी। मैं भी उन्ही लोगों में एक हूं जो "द्विज" भाई क़ी गज़लों के मोहपाश में कैद है। "द्विज" भाई की ग़ज़लें आपको कैसी लगी? मुझे प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी!
********************प्रकाश बादल************************

Monday, 15 December 2008

ग़ज़ल

Posted by Prakash Badal

इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं

हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं


हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल,

वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं


हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी,

हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं


कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमे,

बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं


कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहीं,

जो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है


वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ की,

कि जिनके साये ही दम—ख़म पिघाल देते हैं

12 comments:

bijnior district said...

बहुत अच्छी गजल

"अर्श" said...
This comment has been removed by the author.
"अर्श" said...

द्विज जी नमस्कार
बहोत ही सुंदर भाव से भरे ग़ज़ल लिखी है मकता फ़िर से कमाल का है बहोत ही उम्दा लेखन ,बहोत कुछ सिखाने को मिलता है आप जैसे गुणी जनों से ....
आपका स्नेह परस्पर बना रहे ....

आभार

अर्श

Puneet Sahalot said...

padhkar bahut achha laga... :))

विवेक said...

हरेक बात को हम कल पे टाल देते हैं...क्या बात है

Anonymous said...

waah bahut khub

Himanshu Pandey said...

मैं बहुत कुछ कह नहीं पा रहा हूं . मेरा प्रणाम स्वीकारें.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बेहद सुलझी हुई
दिल को छूने वाली ग़ज़ल.
ऐसे शायर की और भी ग़ज़लें
प्रस्तुत करें तो प्रसन्नता होगी.
बहरहाल शुक्रिया.
==============
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

manu said...

dwiz ji aap aaye.. achhaa laga..
par aapse ee mail ke zariye bat karne me wo mazaa naheen..
agar mujhe apna mobile no, mail karen to jyaada achhaa lagega...
main apni mail pe aapka intezaar kar raha hoon

Yogi said...

हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी,
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं


कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमे,
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं

aapka pehle waala sher maine padha, aur dobara fir se padhaa...first line is really amazing...hamare kal kii jaane shakl kya hogi...WOW

AMAZING DWIJ...

and second sher is also really amazing...

the word misaal, I really liked it...

Dost Mohammed Khan said...

Dwij saheb, kamaal ki ghazal hai. "Kanta nikal dete hain" ghazab ka expression hai. Apke ash'aar mein tanz ki jo undercurrent hai, wo waqai qabil e tareef hai.

नीरज गोस्वामी said...

आज द्विज जी की पुरानी रचनाओं को पढने बैठा हूँ और प्रकाश जी आपको दिल से धन्यवाद दे रहा हूँ ....आप ने हम पाठकों पर बहुत बड़ा अहसान किया है द्विज जी के खजाने के ये मोती लुटवा...सच कहते है झोलियाँ भर गयीं हमारी लेकिन और और करने की हसरत नहीं मिटी...हैरत में हूँ इस ग़ज़ल के कौनसे शेर की तारीफ करूँ....कैसे कोई ऐसी ग़ज़ल कह सकता है जिसका हर शेर दूसरे पे भारी पड़ रहा हो...
इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं

हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी,
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं

कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमे,
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं

कमाल है प्रकाश जी कमाल है...ये कमाल करना द्विज जी के बस की ही बात है...वाह.

नीरज

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