इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं
हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल,
वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं
हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी,
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं
कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमे,
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं
कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहीं,
जो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है
वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ की,
कि जिनके साये ही दम—ख़म पिघाल देते हैं
मेरे हिस्से के डॉ. मेघ
5 weeks ago
12 comments:
बहुत अच्छी गजल
द्विज जी नमस्कार
बहोत ही सुंदर भाव से भरे ग़ज़ल लिखी है मकता फ़िर से कमाल का है बहोत ही उम्दा लेखन ,बहोत कुछ सिखाने को मिलता है आप जैसे गुणी जनों से ....
आपका स्नेह परस्पर बना रहे ....
आभार
अर्श
padhkar bahut achha laga... :))
हरेक बात को हम कल पे टाल देते हैं...क्या बात है
waah bahut khub
मैं बहुत कुछ कह नहीं पा रहा हूं . मेरा प्रणाम स्वीकारें.
बेहद सुलझी हुई
दिल को छूने वाली ग़ज़ल.
ऐसे शायर की और भी ग़ज़लें
प्रस्तुत करें तो प्रसन्नता होगी.
बहरहाल शुक्रिया.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
dwiz ji aap aaye.. achhaa laga..
par aapse ee mail ke zariye bat karne me wo mazaa naheen..
agar mujhe apna mobile no, mail karen to jyaada achhaa lagega...
main apni mail pe aapka intezaar kar raha hoon
हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी,
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं
कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमे,
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं
aapka pehle waala sher maine padha, aur dobara fir se padhaa...first line is really amazing...hamare kal kii jaane shakl kya hogi...WOW
AMAZING DWIJ...
and second sher is also really amazing...
the word misaal, I really liked it...
Dwij saheb, kamaal ki ghazal hai. "Kanta nikal dete hain" ghazab ka expression hai. Apke ash'aar mein tanz ki jo undercurrent hai, wo waqai qabil e tareef hai.
आज द्विज जी की पुरानी रचनाओं को पढने बैठा हूँ और प्रकाश जी आपको दिल से धन्यवाद दे रहा हूँ ....आप ने हम पाठकों पर बहुत बड़ा अहसान किया है द्विज जी के खजाने के ये मोती लुटवा...सच कहते है झोलियाँ भर गयीं हमारी लेकिन और और करने की हसरत नहीं मिटी...हैरत में हूँ इस ग़ज़ल के कौनसे शेर की तारीफ करूँ....कैसे कोई ऐसी ग़ज़ल कह सकता है जिसका हर शेर दूसरे पे भारी पड़ रहा हो...
इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं
हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी,
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं
कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमे,
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं
कमाल है प्रकाश जी कमाल है...ये कमाल करना द्विज जी के बस की ही बात है...वाह.
नीरज
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