द्विजेन्द्र "द्विज"

द्विजेन्द्र "द्विज" एक सुपरिचित ग़ज़लकार हैं और इसके साथ-साथ उन्हें प्रख्यात साहित्यकार श्री सागर "पालमपुरी" के सुपुत्र होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। "द्विज" को ग़ज़ल लिखने की जो समझ हासिल है, उसी समझ के कारण "द्विज" की गज़लें देश और विदेश में सराही जाने लगी है। "द्विज" का एक ग़ज़ल संग्रह संग्रह "जन-गण-मन" भी प्रकाशित हुआ है जिसे साहित्य प्रेमियों ने हाथों-हाथ लिया है। उनके इसी ग़ज़ल संग्रह ने "द्विज" को न केवल चर्चा में लाया बल्कि एक तिलमिलाहट पैदा कर दी। मैं भी उन्ही लोगों में एक हूं जो "द्विज" भाई क़ी गज़लों के मोहपाश में कैद है। "द्विज" भाई की ग़ज़लें आपको कैसी लगी? मुझे प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी!
********************प्रकाश बादल************************

Sunday, 14 December 2008

ग़ज़ल

Posted by Prakash Badal

अब के भी आकर वो कोई हादसा दे जाएगा।

और उसके पास क्या है जो नया दे जाएगा।


फिर से ख़जर थाम लेंगी हँसती—गाती बस्तियाँ,

जब नए दंगों का फिर वो मुद्दआ दे जाएगा।


‘एकलव्यों’ को रखेगा वो हमेशा ताक पर,

‘पाँडवों’ या ‘कौरवों’ को दाख़िला दे जाएगा।


क़त्ल कर के ख़ुद तो वो छुप जाएगा जाकर कहीं,

और सारे बेगुनाहों का पता दे जाएगा।


ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी के साये न होंगे नसीब,

ऐसी मंज़िल का हमें वो रास्ता दे जाएगा।

11 comments:

"अर्श" said...

द्विज जी नमस्कार,
बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने,सच कहूँ तो आपकी गज़ले पढ़कर बहोत कुछ सिखाता भी रहता हूँ...बधाई स्वीकार करें..और आपकी नई ग़ज़ल संग्रह जन गन मन के लिए भी आपको ढेरो बधाई...

आभार
अर्श

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही अच्छी ग़ज़ल, सामयिक,
यथार्थ की बहुत करीब

मज़ा आ गया

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गजल लिखी है।बधाई स्वीकारें।

MANVINDER BHIMBER said...

bhaaw bahut achche hai.....

Anonymous said...

क़त्ल कर के ख़ुद तो वो छुप जाएगा जाकर कहीं,

और सारे बेगुनाहों का पता दे जाएगा।


ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी के साये न होंगे नसीब,

ऐसी मंज़िल का हमें वो रास्ता दे जाएगा।
waah bahut khub lage ye sher aur sach bayan karte badhai

ss said...

"अब के भी आकर वो कोई हादसा दे जाएगा " और "और सारे बेगुनाहों का पता दे जाएगा" बहुत अच्छे लगे

समय चक्र said...

बहुत बढिया गजल ..बधाई.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

क्या बात है!

bijnior district said...

बहुत बढिया गजल। बधाई।

महावीर said...

'द्विज' साहेब
आप की ग़ज़लें पढ़ने वाले बहुत कुछ सीख सकते हैं। आपकी ग़ज़लों को सिर्फ़ मज़े के लिए ही नहीं, ज़रा ग़ौर से एक दो बार पढ़ने से कोई न कोई नई बात सीखने के लिए मिल ही जाती है। इस ग़ज़ल में भी पाठक को आखिरी शे'र में कुछ सीखने को मिलता है।
'ज़िन्दगी' की तकरारे-लफ़्ज़ी की बड़ी खूबसूरत मिसाल है।
आपकी ग़ज़ल की ज़मीन पर कोई तासुरात की बात करें तो बचकाना हरकत होगी।
महावीर शर्मा

नीरज गोस्वामी said...

द्विज भाई...अब क्या कहूँ? लाजवाब शेरों से सजी आप की ये ग़ज़ल बे मिसाल है...बस पढ़ रहा हूँ और वाह वा कर रहा हूँ...जिंदाबाद भाई जिंदाबाद....
नीरज

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