अब के भी आकर वो कोई हादसा दे जाएगा।
और उसके पास क्या है जो नया दे जाएगा।
फिर से ख़जर थाम लेंगी हँसती—गाती बस्तियाँ,
जब नए दंगों का फिर वो मुद्दआ दे जाएगा।
‘एकलव्यों’ को रखेगा वो हमेशा ताक पर,
‘पाँडवों’ या ‘कौरवों’ को दाख़िला दे जाएगा।
क़त्ल कर के ख़ुद तो वो छुप जाएगा जाकर कहीं,
और सारे बेगुनाहों का पता दे जाएगा।
ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी के साये न होंगे नसीब,
ऐसी मंज़िल का हमें वो रास्ता दे जाएगा।
मेरे हिस्से के डॉ. मेघ
5 weeks ago
11 comments:
द्विज जी नमस्कार,
बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने,सच कहूँ तो आपकी गज़ले पढ़कर बहोत कुछ सिखाता भी रहता हूँ...बधाई स्वीकार करें..और आपकी नई ग़ज़ल संग्रह जन गन मन के लिए भी आपको ढेरो बधाई...
आभार
अर्श
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल, सामयिक,
यथार्थ की बहुत करीब
मज़ा आ गया
बहुत बढिया गजल लिखी है।बधाई स्वीकारें।
bhaaw bahut achche hai.....
क़त्ल कर के ख़ुद तो वो छुप जाएगा जाकर कहीं,
और सारे बेगुनाहों का पता दे जाएगा।
ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी के साये न होंगे नसीब,
ऐसी मंज़िल का हमें वो रास्ता दे जाएगा।
waah bahut khub lage ye sher aur sach bayan karte badhai
"अब के भी आकर वो कोई हादसा दे जाएगा " और "और सारे बेगुनाहों का पता दे जाएगा" बहुत अच्छे लगे
बहुत बढिया गजल ..बधाई.
क्या बात है!
बहुत बढिया गजल। बधाई।
'द्विज' साहेब
आप की ग़ज़लें पढ़ने वाले बहुत कुछ सीख सकते हैं। आपकी ग़ज़लों को सिर्फ़ मज़े के लिए ही नहीं, ज़रा ग़ौर से एक दो बार पढ़ने से कोई न कोई नई बात सीखने के लिए मिल ही जाती है। इस ग़ज़ल में भी पाठक को आखिरी शे'र में कुछ सीखने को मिलता है।
'ज़िन्दगी' की तकरारे-लफ़्ज़ी की बड़ी खूबसूरत मिसाल है।
आपकी ग़ज़ल की ज़मीन पर कोई तासुरात की बात करें तो बचकाना हरकत होगी।
महावीर शर्मा
द्विज भाई...अब क्या कहूँ? लाजवाब शेरों से सजी आप की ये ग़ज़ल बे मिसाल है...बस पढ़ रहा हूँ और वाह वा कर रहा हूँ...जिंदाबाद भाई जिंदाबाद....
नीरज
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