सख़्त मौसम से मुसाफ़िर नहीं डरने वाला
नाख़ुदा ! तुझको मुबारक हो ख़ुदाई तेरी
साथ तेरे मैं नहीं पार उतरने वाला
उसपे एहसान ये करना न उठाना उसको
अपनी ताक़त से खड़ा होगा वो गिरने वाला
पार करने थे उसे कितने सवालों के भँवर
अटकलें छोड़ गया डूब के मरने वाला
मैं उड़ानों का तरफ़दार उसे कैसे कहूँ
बालो-पर है जो परिन्दों के कतरने वाला
क्यूँ भला मेरे लिए इतने परेशान हो तुम
एक पत्ता ही तो हूँ सूख के झरने वाला
अपनी नज़रों से गिरा है जो किसी का भी नहीं
साथ क्या देगा तेरा ख़ुद से मुकरने वाला
ग़र्द हालात की अब ऐसी जमी है, तुझ पर
आईने ! अक्स नहीं कोई उभरने वाला
ये ज़मीं वो तो नहीं जिसका था वादा तेरा
कोई मंज़र तो हो आँखों में ठहरने वाला
4 comments:
उसपे एहसान ये करना न उठाना उसको
अपनी ताक़त से खड़ा होगा वो गिरने वाला ..
सुभान अल्ला ... कीमती हीरे की तरह चमकते शेर ...
वाह वाह निकलती है हर शेर पे ...
उम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
उसका है अज़्मे-सफ़र और निखरने वाला
सख़्त मौसम से मुसाफ़िर नहीं डरने वाला
very inspirational.
अपनी नज़रों से गिरा है जो किसी का भी नहीं
साथ क्या देगा तेरा ख़ुद से मुकरने वाला
ग़र्द हालात की अब ऐसी जमी है, तुझ पर
आईने ! अक्स नहीं कोई उभरने वाला
..बहुत खूब!
बहुत सुन्दर गजल .
Post a Comment