द्विजेन्द्र "द्विज"

द्विजेन्द्र "द्विज" एक सुपरिचित ग़ज़लकार हैं और इसके साथ-साथ उन्हें प्रख्यात साहित्यकार श्री सागर "पालमपुरी" के सुपुत्र होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। "द्विज" को ग़ज़ल लिखने की जो समझ हासिल है, उसी समझ के कारण "द्विज" की गज़लें देश और विदेश में सराही जाने लगी है। "द्विज" का एक ग़ज़ल संग्रह संग्रह "जन-गण-मन" भी प्रकाशित हुआ है जिसे साहित्य प्रेमियों ने हाथों-हाथ लिया है। उनके इसी ग़ज़ल संग्रह ने "द्विज" को न केवल चर्चा में लाया बल्कि एक तिलमिलाहट पैदा कर दी। मैं भी उन्ही लोगों में एक हूं जो "द्विज" भाई क़ी गज़लों के मोहपाश में कैद है। "द्विज" भाई की ग़ज़लें आपको कैसी लगी? मुझे प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी!
********************प्रकाश बादल************************

Friday 5 April 2013

Posted by द्विजेन्द्र ‘द्विज’


उसका है अज़्मे-सफ़र और निखरने वाला
सख़्त मौसम से मुसाफ़िर नहीं डरने वाला

नाख़ुदा ! तुझको मुबारक हो ख़ुदाई तेरी
साथ तेरे मैं नहीं पार उतरने वाला

उसपे एहसान ये करना न उठाना उसको
अपनी ताक़त से खड़ा होगा वो गिरने वाला

पार करने थे उसे कितने सवालों के भँवर
अटकलें छोड़ गया डूब के मरने वाला

मैं उड़ानों का तरफ़दार उसे कैसे कहूँ
बालो-पर है जो परिन्दों के कतरने वाला

क्यूँ भला मेरे लिए इतने परेशान हो तुम
एक पत्ता ही तो हूँ सूख के झरने वाला

अपनी नज़रों से गिरा है जो किसी का भी नहीं
साथ क्या देगा तेरा ख़ुद से मुकरने वाला

ग़र्द हालात की अब ऐसी जमी है, तुझ पर
आईने ! अक्स नहीं कोई उभरने वाला

ये ज़मीं वो तो नहीं जिसका था वादा तेरा
कोई मंज़र तो हो आँखों में ठहरने वाला

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