हर क़दम पर खौफ़ की सरदारियाँ रहने लगें
काफिलों में जब कभी ग़द्दारियाँ रहने लगें
नीयतें बद और कुछ बदकारियाँ रहने लगें
सरहादों पर क्यों न गोलाबारियाँ रहने लगें
हर तरफ़ लाचारियाँ,दुशवारियाँ रहने लगें
सरपरस्ती में जहाँ मक्कारियाँ रहने लगें
हर तरफ़ ऐसे हक़ीमों की अजब—सी भीड़ है
चाहते हैं जो यहाँ बीमारियाँ रहने लगें
फिर ख़ुराफ़त के जंगल ही क्यों न उग आएँ वहाँ
ज़ेह्न में अकसर जहाँ बेकारियाँ रहने लगें
क्यों न सच आकर हलक में ही अटक जाए कहो
गरदनों पर जब हमेशा आरियाँ रहने लगें
उनकी बातों में है जितना झूठ सब जल जाएगा
आपकी आँखों में गर चिंगारियाँ रहने लगें
है महक मुमकिन तभी सारे ज़माने के लिए
सोच में ‘द्विज’, कुछ अगर फुलवारियाँ रहने लगें.
चांदनी रातें - भारत में रूस की बातें
5 weeks ago
12 comments:
बहुत ही लाजवाब लिखा है आपने
http://dunalee.blogspot.com/
क्यों न सच आकर हलक में अटक जाए कहो
गरदनों पर जब हमेशा आरियाँ रहने लगें....puri rachna khoobsurat hai...achha hai..aap ne jaldi likha...likhte rahe....
अरसे बाद आमद हुई आपकी......ये शेर पर हमें बहुत भाया ...
उनकी बातों में है जितना झूठ सब जल जाएगा
आपकी आँखों में गर चिंगारियाँ रहने लगें
बस सलाम करूँगा और कुछ कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...
अर्श
उनकी बातों में है जितना झूठ सब जल जाएगा
आपकी आँखों में गर चिंगारियाँ रहने लगें
vaah kya baat hai
"हर तरफ़ ऐसे हक़ीमों की अजब—सी भीड़ है
चाहते हैं जो यहाँ बीमारियाँ रहने लगें"
बहुत प्रासंगिक है यह । समाज का रीति-रिवाज बन गयी है यह आदत । आभार ।
पूरी गजल सुन्दर है ।
जितने ख़ूबसूरत आप हैं उतनी ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल. पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी है लेकिन ये मेरे मन का शेर है-
है महक मुमकिन तभी सारे ज़माने के लिए
सोच में ‘द्विज’, कुछ अगर फुलवारियाँ रहने लगें.
हर तरफ़ ऐसे हक़ीमों की अजब—सी भीड़ है
चाहते हैं जो यहाँ बीमारियाँ रहने लगें
वाह वाह वाह !!! लाजवाब !!!
बहुत बहुत सही कहा आपने....बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...आभार.
क्या बात है द्विज भाई
काफिया देख कर मुझे लगा कि ज़्यादा शेर बनाने मुमकिन न होंगे
आपने न सिर्फ़ शेर बनाये, बल्कि बहुत ही खूबसूरत लव्ज़ों से उनको तराशा भी। !!
इस गज़ल के लिये वाह नहीं कह सकता !!!
काफी कम हो जायेगा।
dwij ji
mere paas koi shabd nahi hai ki main aapki gazalo ki tareef karun .. sab ki sab shaandar aur jaandar hai ...
saat samandar paar ka sapna ... bahut touchy hai ji ...
kahan tak pahunche suhane manjaro tak ... waah waah
main pahle kyon nahi aaya aap ke blog par bus isi baat ka afsos hai ..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
क्यों न सच आकर हलक में ही अटक जाए कहो
गरदनों पर जब हमेशा आरियाँ रहने लगें...
lajawaab sher ......
dwij ji ke saamne kuch kahna .... bas mein nahi hamaare ..... kamaal bas kamaal .....
बहुत सुन्दर ! वाह!
आनन्द आ गया इस रचना को पढ़कर। एक छन्द कुछ टाइपिंग त्रुटि का शिकार लगता है,
"ख़ुराफ़त के जंगल" वाला
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