द्विजेन्द्र "द्विज"

द्विजेन्द्र "द्विज" एक सुपरिचित ग़ज़लकार हैं और इसके साथ-साथ उन्हें प्रख्यात साहित्यकार श्री सागर "पालमपुरी" के सुपुत्र होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। "द्विज" को ग़ज़ल लिखने की जो समझ हासिल है, उसी समझ के कारण "द्विज" की गज़लें देश और विदेश में सराही जाने लगी है। "द्विज" का एक ग़ज़ल संग्रह संग्रह "जन-गण-मन" भी प्रकाशित हुआ है जिसे साहित्य प्रेमियों ने हाथों-हाथ लिया है। उनके इसी ग़ज़ल संग्रह ने "द्विज" को न केवल चर्चा में लाया बल्कि एक तिलमिलाहट पैदा कर दी। मैं भी उन्ही लोगों में एक हूं जो "द्विज" भाई क़ी गज़लों के मोहपाश में कैद है। "द्विज" भाई की ग़ज़लें आपको कैसी लगी? मुझे प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी!
********************प्रकाश बादल************************

Saturday 25 July 2009

पंख कुतर कर जादूगर जब चिड़िया को तड़पाता है
सात समंदर पार का सपना , सपना ही रह जाता है

जयद्रथहो यादुर्योधनहो सबसे उसका नाता है
अब अपना गाँडीव उठातेअर्जुनभी घबराता है

जब सन्नाटों का कोलाहल इक हद से बढ़ जाता है
तब कोई दीवाना शायर ग़ज़लें बुन कर लाता है

दावानल में नए दौर के पंछी ने यह सोच लिया
अब जलते पेड़ों की शाख़ों से अपना क्या नाता है


प्रश्न युगों से केवल यह है हँसती-गाती धरती पर
सन्नाटे के साँपों को रह-रह कर कौन बुलाता है

सब कुछ जानेब्रह्माकिस मुँह पूछे इन कंकालों से
इस धरती पर शिव ताण्डव-सा डमरू कौन बजाता है

द्विज’! वो कोमल पंख हैं डरते अब इक बाज के साये से
जिन पंखों से आस का पंछी सपनों को सहलाता है।

21 comments:

संगीता पुरी said...

गजब की रचना .. बहुत बढिया !!

M VERMA said...

‘द्विज’! वो कोमल पंख हैं डरते अब इक बाज के साये से
जिन पंखों से आस का पंछी सपनों को सहलाता है।
बहुत खूबसूरत

Pritishi said...

Kaii ashaar bahut pasand aaye! Achchi Ghazal, badhai! Chhota mooh badi baat ho sakti hai, mera gyaan bhi nyoon hai aapke saamne, magar main sachchi tippani karoongi Ghazal per! Gustaakhi muaaf. Aasha hai aap anyatha nahi lenge.

पंख कुतर कर जादूगर जब चिड़िया को तड़पाता है
सात समंदर पार का सपना , सपना ही रह जाता है
- yah zara ajeeb hai, pehla misra kuchh kathor sa hai mere liye.....khair apni apni pasand hai.

‘जयद्रथ’ हो या ‘दुर्योधन’हो सबसे उसका नाता है
अब अपना गाँडीव उठाते ‘अर्जुन’ भी घबराता है
-wah! bahut badhiya

जब सन्नाटों का कोलाहल इक हद से बढ़ जाता है
तब कोई दीवाना शायर ग़ज़लें बुन कर लाता है
- kitna khoobsoorat She'r, pehle misre ka 'ik' shabd zara...

सब कुछ जाने ‘ब्रह्मा’ किस मुँह पीछे इन कंकालों से
इस धरती पर शिव ताण्डव-सा डमरू कौन बजाता है
- bahut khoob!
‘द्विज’! वो कोमल पंख हैं डरते अब इक बाज के साये से
जिन पंखों से आस का पंछी सपनों को सहलाता है।
- sabse badhiya! too good!

Pranaam
God bless
RC

Himanshu Pandey said...

"प्रश्न युगों से केवल यह है हँसती-गाती धरती पर
सन्नाटे के साँपों को रह-रह कर कौन बुलाता है"

समूची मानवता को संबोधित भी है यह प्रश्न । मैं केवल इन दो पंक्तियों के मोहपाश में जकड़ लिया गया हूँ । कब छूटूँगा - कह नहीं सकता । इनकी बनावट और बुनावट दोनों ने मुग्ध किया । आभार ।

"अर्श" said...

KUCHH BHI KAHNE KE LAYAK NAHI HUN GURU DEV KO PRANAAM KARTA CHALUN YAHI .........



ARSH

दिगम्बर नासवा said...

जब सन्नाटों का कोलाहल इक हद से बढ़ जाता है
तब कोई दीवाना शायर ग़ज़लें बुन कर लाता है

इतने लाजवाब शेर ....... दिन बन गया अपना तो ........... ........... गज़ब के शेर हैं सब के सब ............. बहुत khoob ....... इतने अछे शेर कहने वाला सच में दीवाना ही तो है..........

संजीव गौतम said...

जब सन्नाटों का कोलाहल इक हद से बढ़ जाता है
तब कोई दीवाना शायर ग़ज़लें बुन कर लाता है
वाह!वाह!वाह! पूरी ग़ज़ल लाजवाब

गौतम राजऋषि said...

कहाँ हो प्रकाश भाई....
द्विज साब की इस ग़ज़ल के तो हम पुराने मुरीद हैं...एक तरही भी मार दिया है इस जमीन पर तो।

Poonam Agrawal said...

Main RC se poori tereh sahmat hun....kya liku ....sabne itna likh diya hai ki kuch likhne ke liye shesh hi nahi hai....ek hi shabd kahungi BEHTREEN....
Regards.

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

प्रिय बादल भाई जान

"सब कुछ जाने ब्रह्मा किस मुँह पीछे इन कंकालों से
" में
"पीछे" को "पूछे" कर दें.

मुकेश कुमार तिवारी said...

प्रकाश जी,

आपका शुक्रिया कि इतनई बेहतरीन गज़ल पढ़वाने के लिये।

श्री देवेन्द्र द्विज जी के लिये क्या और कुछ कहे जाने या लिखे जाने की जरूरत है, नमन!!

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

डिम्पल मल्होत्रा said...

पंख कुतर कर जादूगर जब चिड़िया को तड़पाता है
सात समंदर पार का सपना , सपना ही रह जाता है...shabad kum hai tareef ke liye.boht der se intjaar tha apki post ka....

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन ग़ज़ल है भाई, बधाई...

Unknown said...

Aapki gazal to kayi kayi baar padhti hoon
aur har baar achambhit.............

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

khubsurat gajal

Ashutosh said...

पूरी ग़ज़ल लाजवाब....बहुत बढिया !!

हिन्दीकुंज

sandhyagupta said...

प्रश्न युगों से केवल यह है हँसती-गाती धरती पर
सन्नाटे के साँपों को रह-रह कर कौन बुलाता है

Aap hi likh sakte hain.Bahut badhiya.

Urmi said...

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

अशरफुल निशा said...

Jeevan ke kareeb se le jaatee hai aapki gazal.
Think Scientific Act Scientific

Unknown said...

Don't know what to write... as I don’t possess that erudition to write something or comment on your creations.
All your ghazals are so well framed that they take the readers to an entirely different dimension.... Every thought is so well narrated.
I've become a great fan of your ghazals.
Thanks for giving me such an opprtunity.

Regards,
Shalini

Unknown said...

बहुत ख़ूब ‘द्विज’ साहब.
आनन्द आ गया.
और रचनाएँ भी जल्दी दें.

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