द्विजेन्द्र "द्विज"

द्विजेन्द्र "द्विज" एक सुपरिचित ग़ज़लकार हैं और इसके साथ-साथ उन्हें प्रख्यात साहित्यकार श्री सागर "पालमपुरी" के सुपुत्र होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। "द्विज" को ग़ज़ल लिखने की जो समझ हासिल है, उसी समझ के कारण "द्विज" की गज़लें देश और विदेश में सराही जाने लगी है। "द्विज" का एक ग़ज़ल संग्रह संग्रह "जन-गण-मन" भी प्रकाशित हुआ है जिसे साहित्य प्रेमियों ने हाथों-हाथ लिया है। उनके इसी ग़ज़ल संग्रह ने "द्विज" को न केवल चर्चा में लाया बल्कि एक तिलमिलाहट पैदा कर दी। मैं भी उन्ही लोगों में एक हूं जो "द्विज" भाई क़ी गज़लों के मोहपाश में कैद है। "द्विज" भाई की ग़ज़लें आपको कैसी लगी? मुझे प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी!
********************प्रकाश बादल************************

Thursday 18 December 2008

ग़ज़ल/18/12/2008

Posted by Prakash Badal

न वापसी है जहाँ से वहाँ हैं सब के सब।

ज़मीं पे रह के ज़मीं पर कहाँ हैं सब के सब।



कोई भी अब तो किसी की मुख़ाल्फ़त में नहीं,

अब एक-दूसरे के राज़दाँ हैं सब के सब।



क़दम-कदम पे अँधेरे सवाल करते हैं,

ये कैसे नूर का तर्ज़े-बयाँ हैं सब के सब।



वो बोलते हैं मगर बात रख नहीं पाते,

ज़बान रखते हैं पर बेज़बाँ हैं सब के सब।



सुई के गिरने की आहट से गूँज उठते हैं,

गिरफ़्त-ए-खौफ़ में ख़ाली मकाँ हैं सब के सब।


झुकाए सर जो खड़े हैं ख़िलाफ़ ज़ुल्मों के,

‘द्विज’,ऐसा लगता है वो बेज़बाँ हैं सब के सब।

11 comments:

Himanshu Pandey said...

"सूई के गिरने की आहट से गूंज उठते हैं,
गिरफ़्त-ए-खौफ़ में खाली मकां हैं सब के सब."

बहुत खूबसूरत गजल.

Yogesh Verma Swapn said...

bahut khoob , jaisa himanshu ji ne kaha, meri rai mein ghazal ki atma hai ye sher. sui ke..............

badhai

yogesh swapn

Sanjeev Mishra said...

aaj pahli baar apka blog visit kiya hai. aapki doosri ghazal atyant sundar hai.
"isi tarah se ye kaanta nikaal dete hain, hum apne dard ko ghazlon men dhaal dete hain".
padhkar aisa laga jaise ki Saahir "ludhiyaanzi" ki koi ghazal padh padh rahe hain.
aisi stariya rachna ko padhne ka avsar dene ke liye dhanywaad.

Vinay said...

बहुत ख़ूब साहब!

गौतम राजऋषि said...

द्विज जी की गज़लों को इतनी दफा पढ़ चुका हूँ कविता-कोश पे और अब तो रचनाकार पर भी आ चुकी है...इतनी बार पढ़ चुका हूं कि आदत-सी हो गयी है.
तमाम तारीफों से परे...
बस पढ़ लेता हूँ और गुन लेता हूँ
ये कैसे नूर का तर्जे-बयां हैं सब के सब..
और क्या

रंजना said...

Behtareen......

manu said...

laajwab ghazal padhaa di sahab
sukriyaa....

Prakash Badal said...

हिमांशु जी,योगेश जी,संजीव जी,विनय जी,राजरिशी जी, रंजना जी और मनुजी,

द्विज भाई की ग़ज़लें आपको पसंद आती है तो मुझे इस बात की संतुष्टि हो जाति है कि मैं एक अच्छी मिशन पर हूं और द्विज भाई का क़ायल होने के बाद ही मैने ये ठाना कि उन्हें मैं ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पढवाऊंगा। मुझे आप सभी की मिल रही प्रतिक्रियाओं से बेहद उत्साह मिला है और ज़ाहिर सी बात है कि भाई द्विज आपके इस असीम स्नेह से बेहद ख़ुश हो रहे होंगे और नई ग़ज़लें भी कहे जाने को तैयार हो रही होंगी। आप सभी का आभार!

महावीर said...

लाजवाब!
हर शे'र पर ज़बान से 'वाह' निकलता है।
बधाई।

सतपाल ख़याल said...

मै इस दुविधा मे हूँ कि मै क्या कहूँ ! हर शे’र
अपने आप मे एक ग़ज़ल है और बड़ी बात ये है कि द्विज जी ने अपने जिवन २५-३० बरस इस विधा के नाम किए हैं और कई ग़ज़लें लिखी और कई ज़गह छपे, अब ये विधा उन्होंने आत्मसात कर ली है.
प्रकाश बादल ने बहुत बढ़िया काम किया है जो सराहनीय है.
सादर ख्याल

Divya Narmada said...

पहली बार सागर साहेब और द्विज जी के कलाम से वाकिफ हुआ. दोनों एक से बढ़कर एक. कौन सेर कौन सवा सेर... कहना मुश्किल. प्रायः सभी शे'र मन को छूते हैं. नए गज़लकारों को इनसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. दिव्य नर्मदा के लिए कुछ गज़लें सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम पर भेजिए.
- sanjivsalil.blogspot.com
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