औज़ार बाँट कर ये सभी तोड़—फोड़ के
रक्खोगे किस तरह भला दुनिया को जोड़ के
ख़ूँ से हथेलियों को ही करना है तर—ब—तर
पानी तो आएगा नहीं पत्थर निचोड़ के
बेशक़ इन आँसुओं को तू सीने में क़ैद रख
नदियाँ निकल ही आएँगी पर्वत को फोड़ के
तूफ़ान साहिलों पे बहुत ही शदीद हैं
ले जाऊँ अब कहाँ मैं सफ़ीने को मोड़ के
शामिल ही नहीं इसमें हुनरमंद लोग अब
इतने कड़े नियम हैं ज़माने में होड़ के
रहते हैं लाजवाब अब ऐसे सवाल ‘द्विज’!
पूछे तेरा ज़मीर जो तुझको झंझोड़ के
मेरे हिस्से के डॉ. मेघ
5 weeks ago
6 comments:
'तूफ़ान साहिलों पे…'
बहुत गहरे भाव बहुत आसान अल्फ़ाज़ में।
बधाई।t
waah sahi mein toofanwala sher bada gazab ka hai,gazal sundar badhai
Bhai Prakash ji,Aapke dwara preshit 'dwij' ki gazal padhi.Behad sunder gazal hai.Khas baat yah hai ki yah bahar men hai.Aap ab kaise kahenge ki meeter men rahane par arth ki hatya ho jaati hai.Yah gazal bahar men bhi hai aur arth itna spastha aur gambhir ki seedhe dil men utar jaye.Itani sunder gazal likhane ke lkiye bhai 'Dwij' ko meri aur se hardik badhai aur aapko is gazal ke preshit karane ke liye dhanyawad.
Chandrabhan Bhardwaj
ख़ूँ से हथेलियों को ही करना है तर—ब—तर
पानी तो आएगा नहीं पत्थर निचोड़ के
क्या कहूँ??? लाजवाब या बेमिसाल....द्विज जी मेरे गुरु भी हैं और छोटे भाई समान भी.....इनके लिए दुआ करता हूँ की ऐसी नायाब ग़ज़लें हमेशा लिखते रहें....आमीन
नीरज
bahut sundar.
"शामिल ही नहीं इसमें हुनरमंद लोग अब / इतने कड़े नियम हैं ज़माने में होड़ के"
कैसे कह लेते हैं सर,इतनी बड़ी बातें इतनी आसानी से और पूरे छ्म्द में?
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