द्विजेन्द्र "द्विज"

द्विजेन्द्र "द्विज" एक सुपरिचित ग़ज़लकार हैं और इसके साथ-साथ उन्हें प्रख्यात साहित्यकार श्री सागर "पालमपुरी" के सुपुत्र होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। "द्विज" को ग़ज़ल लिखने की जो समझ हासिल है, उसी समझ के कारण "द्विज" की गज़लें देश और विदेश में सराही जाने लगी है। "द्विज" का एक ग़ज़ल संग्रह संग्रह "जन-गण-मन" भी प्रकाशित हुआ है जिसे साहित्य प्रेमियों ने हाथों-हाथ लिया है। उनके इसी ग़ज़ल संग्रह ने "द्विज" को न केवल चर्चा में लाया बल्कि एक तिलमिलाहट पैदा कर दी। मैं भी उन्ही लोगों में एक हूं जो "द्विज" भाई क़ी गज़लों के मोहपाश में कैद है। "द्विज" भाई की ग़ज़लें आपको कैसी लगी? मुझे प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी!
********************प्रकाश बादल************************

Saturday, 22 November 2008

ग़ज़ल/22/11/2008

Posted by Prakash Badal


ख़ुद तो जी हमेशा ही तिश्नगी पहाड़ों ने
सागरों को दी लेकिन हर नदी पहाड़ों ने

आदमी को बख़्शी है ज़िन्दगी पहाड़ों ने।
आदमी से पाई है बेबसी पहाड़ों ने।

हर क़दम निभाई है दोस्ती पहाड़ों ने।
हर क़दम पे पाई है बेरुख़ी पहाड़ों ने।

मौसमों से टकरा कर हर क़दम पे दी,
सबके जीने के इरादों को पुख़्तगी पहाड़ों ने

देख हौसला इनका और शक्ति सहने की !
टूट कर बिखर के भी उफ़ न की पहाड़ों ने।

नीलकंठ शैली में विष स्वयं पिए सारे,
पर हवा को बख़्शी है ताज़गी पहाड़ों ने।

रोक रास्ता उनका हाल जब कभी पूछा,
बादलों को दे दी है नग़्मगी पहाड़ों ने।

लुट-लुटा के हँसने का योगियों के दर्शन सा,
हर पयाम भेजा है दायिमी पहाड़ों ने।

सबको देते आए हैं नेमतें अज़ल से,
ये ‘द्विज’ को भी सिखाई है शायरी पहाड़ों ने।


7 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना है।sundar Baav hai| badhaaI|

"अर्श" said...

bahot khub likha hai apane .. dhero badhai apako...

mehek said...

देख हौसला इनका और शक्ति सहने की !
टूट कर बिखर के भी उफ़ न की पहाड़ों ने।

नीलकंठ शैली में विष स्वयं पिए सारे,
पर हवा को बख़्शी है ताज़गी पहाड़ों ने।
waah khubsurat bhav badhai

नीरज गोस्वामी said...

द्विज जी के लेखन के हम शुरू से कायल हैं और उनकी ये रचना पहाडों का दुःख दर्द क्या खूबी से बयां करती है...भाई वाह...
नीरज

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

chandrabhan bhardwaj said...

achchhi gazal hai.Badhai.
Chandrabhan Bhardwaj

गौतम राजऋषि said...

नायाब रचना की प्रस्तुती के लिये धन्यवाद...
द्विज के बारे में तो जितना कहा जाय कम है

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