द्विज की ग़ज़लें
ग़ज़ल
चुप्पियाँ जिस दिन ख़बर हो जायेंगी।
हस्तियां दर- ब- दर हो जाएंगी।
आज हैं अमृत मगर कल देखना,
ये दवाएं ही ज़हर हो जाएंगी।
ये दवाएं ही ज़हर हो जाएंगी।
सीख लेंगी जब नई कुछ थिरकनें,
बस्तियां सारी नगर हो जाएंगी।
बस्तियां सारी नगर हो जाएंगी।
सभ्य जन हैं, आस्थाएं, क्या ख़बर,
अब इधर हैं कब किधर हो जाएंगी।
अब इधर हैं कब किधर हो जाएंगी।
अब तटों से भी हटा लो कश्तियाँ,
वरना तूफां की नज़र हो जाएंगी।
वरना तूफां की नज़र हो जाएंगी।
गो निज़ामे अम्न है पार देखना,
अम्न की बातें ग़दर हो जाएंगी।
अम्न की बातें ग़दर हो जाएंगी।
गर इरादों में नहीं पुख्ता यकीं,
सब दुआएं बेअसर हो जाएंगी।
सब दुआएं बेअसर हो जाएंगी।
मंजिलों का फ़िक्र है गर आपको,
मंजिलें ख़ुद हमसफर जो जाएंगी।
मंजिलें ख़ुद हमसफर जो जाएंगी।
ज़िन्दगी मुश्किल सफर है धूप का,
हिम्मतें आख़िर शजर हो जाएंगी।
हिम्मतें आख़िर शजर हो जाएंगी।
'द्विज' तेरी ग़ज़ल अगर है बे- बहार,
प्रेम से लिख बा-बहर हो जायेगी।
ग़ज़ल
जो पलकर आस्तीनों में हमारी हमीं को डसते हैं।
उन्हीं की जी हजूरी है, उन्हीं को नमस्ते है।
प्रेम से लिख बा-बहर हो जायेगी।
ग़ज़ल
जो पलकर आस्तीनों में हमारी हमीं को डसते हैं।
उन्हीं की जी हजूरी है, उन्हीं को नमस्ते है।
ये फसलें पक भी जाएंगी तो देंगी क्या भला जग को,
बिना मौसाम ही जिन पर रात दिन ओले बरसते हैं।
बिना मौसाम ही जिन पर रात दिन ओले बरसते हैं।
कई सदियों से जिन कांटो ने उनके पंख भेदे हैं,
परिन्दे हैं बहुत मासूम उन काँटों में फंसते हैं।
परिन्दे हैं बहुत मासूम उन काँटों में फंसते हैं।
कहीं हैं खून के जोहड़ कहीं अम्बार लाशों के,
समझ में ये नहीं आता, ये किस मंजिल के रस्ते हैं।
समझ में ये नहीं आता, ये किस मंजिल के रस्ते हैं।
अभागे लोग हैं कितने, इसी संपन्न बस्ती में,
अभावों के जिन्हें हर पल भयानक सांप डसते हैं।
अभावों के जिन्हें हर पल भयानक सांप डसते हैं।
तुम्हारे ख्वाब की जन्नत में मन्दिर और मस्जिद है।
हमारे ख्वाब में 'द्विज' सिर्फ़ रोटी-दाल बसते हैं।
हमारे ख्वाब में 'द्विज' सिर्फ़ रोटी-दाल बसते हैं।
6 comments:
बहुत अच्छा लिखा है. आपका स्वागत है.
बहुत बहुत स्वागत है आपका.. अच्छा लिखते हैं आप..जारी रखियेगा ज़रूर...दिनेश
नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है...अच्छा लिखते हैं आप ... आशा है आप अपनी प्रतिभा से चिट्ठा जगत को समृद्ध करेंगे.... हमारी शुभकामनाएं भी आपके साथ है।
chup rahne ka sabab hai kuchh to, vakt aaya to ham bhee bolenge.
क्या बात है.! माशाअल्लाह!
जो पलकर आस्तीनों में हमारी हमीं को डसते हैं।
उन्हीं की जी हजूरी है, उन्हीं को नमस्ते है।
कहते हैं नंग बड़े परमेश्वर से।
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