द्विजेन्द्र "द्विज"

द्विजेन्द्र "द्विज" एक सुपरिचित ग़ज़लकार हैं और इसके साथ-साथ उन्हें प्रख्यात साहित्यकार श्री सागर "पालमपुरी" के सुपुत्र होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। "द्विज" को ग़ज़ल लिखने की जो समझ हासिल है, उसी समझ के कारण "द्विज" की गज़लें देश और विदेश में सराही जाने लगी है। "द्विज" का एक ग़ज़ल संग्रह संग्रह "जन-गण-मन" भी प्रकाशित हुआ है जिसे साहित्य प्रेमियों ने हाथों-हाथ लिया है। उनके इसी ग़ज़ल संग्रह ने "द्विज" को न केवल चर्चा में लाया बल्कि एक तिलमिलाहट पैदा कर दी। मैं भी उन्ही लोगों में एक हूं जो "द्विज" भाई क़ी गज़लों के मोहपाश में कैद है। "द्विज" भाई की ग़ज़लें आपको कैसी लगी? मुझे प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी!
********************प्रकाश बादल************************

Monday, 20 October 2008

Posted by Prakash Badal

द्विज की ग़ज़लें

ग़ज़ल

चुप्पियाँ जिस दिन ख़बर हो जायेंगी।
हस्तियां दर- ब- दर हो जाएंगी।

आज हैं अमृत मगर कल देखना,
ये दवाएं ही ज़हर हो जाएंगी।

सीख लेंगी जब नई कुछ थिरकनें,
बस्तियां सारी नगर हो जाएंगी।

सभ्य जन हैं, आस्थाएं, क्या ख़बर,
अब इधर हैं कब किधर हो जाएंगी।

अब तटों से भी हटा लो कश्तियाँ,
वरना तूफां की नज़र हो जाएंगी।

गो निज़ामे अम्न है पार देखना,
अम्न की बातें ग़दर हो जाएंगी।

गर इरादों में नहीं पुख्ता यकीं,
सब दुआएं बेअसर हो जाएंगी।

मंजिलों का फ़िक्र है गर आपको,
मंजिलें ख़ुद हमसफर जो जाएंगी।

ज़िन्दगी मुश्किल सफर है धूप का,
हिम्मतें आख़िर शजर हो जाएंगी।

'द्विज' तेरी ग़ज़ल अगर है बे- बहार,
प्रेम से लिख बा-बहर हो जायेगी।


ग़ज़ल

जो पलकर आस्तीनों में हमारी हमीं को डसते हैं।
उन्हीं की जी हजूरी है, उन्हीं को नमस्ते है।

ये फसलें पक भी जाएंगी तो देंगी क्या भला जग को,
बिना मौसाम ही जिन पर रात दिन ओले बरसते हैं।

कई सदियों से जिन कांटो ने उनके पंख भेदे हैं,
परिन्दे हैं बहुत मासूम उन काँटों में फंसते हैं।

कहीं हैं खून के जोहड़ कहीं अम्बार लाशों के,
समझ में ये नहीं आता, ये किस मंजिल के रस्ते हैं।

अभागे लोग हैं कितने, इसी संपन्न बस्ती में,
अभावों के जिन्हें हर पल भयानक सांप डसते हैं।

तुम्हारे ख्वाब की जन्नत में मन्दिर और मस्जिद है।
हमारे ख्वाब में 'द्विज' सिर्फ़ रोटी-दाल बसते हैं।



6 comments:

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है. आपका स्वागत है.

dinesh kandpal said...

बहुत बहुत स्वागत है आपका.. अच्छा लिखते हैं आप..जारी रखियेगा ज़रूर...दिनेश

संगीता पुरी said...

नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है...अच्छा लिखते हैं आप ... आशा है आप अपनी प्रतिभा से चिट्ठा जगत को समृद्ध करेंगे.... हमारी शुभकामनाएं भी आपके साथ है।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

chup rahne ka sabab hai kuchh to, vakt aaya to ham bhee bolenge.

Amit K Sagar said...

क्या बात है.! माशाअल्लाह!

रचना गौड़ ’भारती’ said...

जो पलकर आस्तीनों में हमारी हमीं को डसते हैं।
उन्हीं की जी हजूरी है, उन्हीं को नमस्ते है।
कहते हैं नंग बड़े परमेश्वर से।

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