भाई सतपाल"ख़्याल" ने एक महफिल सजाई "आज की ग़ज़ल" पर जिसमें मिसरा-ए-तरह "कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे" पर ग़ज़ल कही जानी थी। बड़े-बड़े शायरों ने इसमें भाग लिया और ये बहुत ही सफल आयोजन रहा। यहाँ पर "द्विज "भाई के काफियों का पिटारा जो खुला तो खुलता ही गया हमेशा की तरह। यह ग़ज़ल आपकी नज़्र कर रहा हूँ। -प्रकाश बादल
मिटा दे तू मेरे खेतों से खरपतवार चुटकी में
तो फ़स्लें मेरे सपनों की भी हों तैयार चुटकी में
हवा के रुख़ से वो भी हो गये लाचार चुटकी में
हवा का रुख़ बदल देते थे जो अख़बार चुटकी में
कभी अँधियार चुटकी में कभी उजियार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
भले मिल जाएगा हर चीज़ का बाज़ार चुटकी में
नहीं बिकता कभी लेकिन कोई ख़ुद्दार चुटकी में
बहुत थे वलवले दिल के मगर अब सामने उनके
उड़न-छू हो गई है ताक़त-ए-गुफ़्तार चुटकी में
अजब तक़रीर की है रहनुमा ने अम्न पर यारो !
निकल आए हैं चाकू तीर और तलवार चुटकी में
तरीक़ा, क़ायदा, क़ानून हैं अल्फ़ाज़ अब ऐसे
उड़ाते हैं जिन्हें कुछ आज के अवतार चुटकी में
कभी ख़ामोश रहकर कट रहे रेवड़ भी बोलेंगे
कभी ख़ामोश होंगे ख़ौफ़ के दरबार चुटकी में
वो जिनकी उम्र सारी कट गई ख़्वाबों की जन्न्त में
हक़ीक़त से कहाँ होंगे भला दो-चार चुटकी में
नतीजा यह बड़ी गहरी किसी साज़िश का होता है
नहीं हिलते किसी घर के दरो-दीवार चुटकी में
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
परिन्दे और तसव्वुर के लिए सरहद नहीं होती
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में.
बस इतना ही कहा था शहर का मौसम नहीं अच्छा
सज़ा का हो गया सच कह के ‘द्विज’ हक़दार चुटकी में
मेरे हिस्से के डॉ. मेघ
5 weeks ago
26 comments:
वाह जी वाह अब द्विज जी के ग़ज़ल के बारे में क्या कहने प्रकाश भाई इनके गज़ल्गोई और आपकी प्रस्तुति का मुरीद हूँ मैं तो ... ढेरो बधाई...
अर्श
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
परिन्दे और तसव्वुर के लिए सरहद नहीं होती
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में.
Gautam Ji ke blog par padha tha, ek sher.... vahiN bahut achchha laga tha, fir se badhaai
चुटकी से हो गया,प्यार चुटकी में, माउस पर चुटकी चला कर,होना होगा बहार चुटाकी मे.
waah bahut sunder kafiye hai aur gazal to lajawab hai hi.
Bahut hii sundar Dwij bhai...
Kamaal karte ho...
कुछ शेर तो बहुत ही अच्छे थे। गज़ल बहुत उन्दा है।
उन्दा है गज़ल बहुत .........
thanks for making it read 2nd time
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
bahut hi sunder dwij ji , prakash ji ka dobara gazal se rubaru karane ke liye dhanyawaad, gazal ke sabhi sher to lajawaab hain hi.bila shak.
बेहतरीन ग़ज़ल है। सारे ही अशा'र एक से एक बढ़कर हैं। इसमें तो शक़ ही नहीं कि आप रदीफ़ और क़ाफ़िये के तो बादशाह हैं जो इस ग़ज़ल में बरक़रार हैं। अगर कुछ नई नई बातों की ख़्वाहिश हो तो इस ब्लाग पर आने से बहुत कुछ मिल जाता है।
प्रकाश भाई ये इतने लंबे समय तक के लिये यूँ कहाँ गायब हो जाते हो आप...
द्विज जी की इस ग़ज़ल पे तो क्य कहें...ये तो हमारी खुशनसीबी है कि हमें इनकी गज़ल के साथ मंच साझा करने का मौका मिला...जहे-नसीब
आप कैसे हैं?
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल.
AAPKEE GAZAL KE SABHEE SHER ACHCHHE
HAIN-
RAWAANEE DEKH KAR INKEE
MEREE SARKAR LAGTAA HAI
KAHE HAIN AAPNE JAESE
SABHEE ASHAAR CHUTKI MEIN
BADHAAEE
सारे ही शेर एक से बढ़ कर एक हैं।
किसका ज़िक्र करें और किसे छोड़ें?
हार्दिक बधाई।
prakaash ji ,
saadar namaskaar ,
main bahut din se dwij saahab kee gajalen padh rahee hoon ..unke liye kuch bhee kehnaa sooraj ko diyaa dikhaanen jaisaa hai .....aap ke prayaas ke ham ehsaammand hue ..aur jab saagar saahab ka kalaam padha to ek ekshabd roh main utartaa lagaa ...unkaa kaha har lafj jidgee ke anubhav jal se seenchaa hua hai ...
aap bahut kismat waale hain kee aapko unkaa saanidhya praapt hai
द्विज जी इस बार तो चुटकी में माशाल्लाह बहोत कुछ हो गया हमारे ब्लॉग पर और आप खैर खबर लेने भी नहीं आये ...और यहाँ तो आप भी चाकू तीर और तलवार निकले बैठे हैं .....
अजब तक़रीर की है रहनुमा ने अम्न पर यारो !
निकल आए हैं चाकू तीर और तलवार चुटकी में
वाह जी वाह....!!
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
माशाल्लाह... आपको गहराईयाँ मुबारक .....!!
परिन्दे और तसव्वुर के लिए सरहद नहीं होती
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में.
बहोत खूब ....!!
मैं क्या कहूँ...सोच रहा हूँ...एक एक शेर लाजवाब है...ये होती है उस्तादों की शायरी...हम जैसे लाख कोशिश कर के भी जहाँ पहुँच नहीं पाते वहां ये पहुँच जाते हैं "चुटकी में". द्विज जी की शायरी का मैं दीवाना हूँ और जब वो ऐसे शेर...
अजब तक़रीर की है रहनुमा ने अम्न पर यारो !
निकल आए हैं चाकू तीर और तलवार चुटकी में
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
परिन्दे और तसव्वुर के लिए सरहद नहीं होती
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में.
...चुटकी में कह देते हैं तो दीवानगी सर चढ़ कर बोलने लगती है...सुभान अल्लाह...इश्वर से प्रार्थना है की वो हमें उनके अश्हार बार बार लगातार पढने का मौका देता रहे ...आमीन...
नीरज
Har baar ki tarah man moha aapne.Badhai.
मिटा दे तू मेरे खेतों से खरपतवार चुटकी में
तो फ़स्लें मेरे सपनों की भी हों तैयार चुटकी में
सप्नो की फ़स्ल और मिटना खरपतवार का क्या उडान भरी है आपकी कल्पना ने,खूब-ब -खूब द्विज
भाई-श्याम सखा ‘श्याम
Achha Hai ji,Bahot achha hai!
बेहतरीन गजल है भाई... सतपाल जी के ब्लाग पर भी इसे पढ़ा था.. बधाई..
amazing......shahar ka mousam achha nahi......boht sunder...
boht sunder ko or kya kahun???khubsurat??pata nahi kya kahana chiye...achha nahi laga apko??
aap baat bahut kaaml se kahte ho
karptvaar ka use is tarah gazal mein dekh kar badhi khushi hui
aap naye naye shabdon ka use karte hain aur baat ko bhaut saralta se kahte hain
bahut hi achhi gazal kahi hai
अरे वाह, चुटकी चुटकी में बढिया गजल तैयार हो गयी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
द्विज जी के ग़ज़ल के बारे में क्या कहने ....
मेरा नया ब्लाग जो बनारस के रचनाकारों पर आधारित है,जरूर देंखे...
www.kaviaurkavita.blogspot.com
boht din se kuchh likha nahi aapne......w8ing....
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