ज़ेह्न में और कोई डर नहीं रहने देता।
शोर अन्दर का हमें घर नहीं रहने देता।
कोई ख़ुद्दार बचा ले तो बचा ले वरना,
पेट काँधों पे कोई सर नहीं रहने देता।
आस्माँ भी वो दिखाता है परिन्दों को नए,
हाँ, मगर उनपे कोई ‘पर’ नहीं रहने देता।
ख़ुश्क़ आँखों में उमड़ आता है बादल बन कर,
दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
एक पोरस भी तो रहता है हमारे अन्दर,
जो सिकन्दर को सिकन्दर नहीं रहने देता।
उनमें इक रेत के दरिया–सा ठहर जाता है,
ख़ौफ़ आँखों में समन्दर नहीं रहने देता।
हादिसों का ही धुँधलका–सा ‘द्विज’ आँखों में मेरी,
ख़ूबसूरत कोई मंज़र नहीं रहने देता।
मेरे हिस्से के डॉ. मेघ
5 weeks ago
38 comments:
बहुत सुंदर रचना आभार
Amazing creation Mr. Dwij...
आप तो कमाल हैं,
बहुत ही बढ़िया
ख़ुश्क़ आँखों में उमड़ आता है बादल बन कर,
दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
एक पोरस भी तो रहता है हमारे अन्दर,
जो सिकन्दर को सिकन्दर नहीं रहने देता।
क्या बात है
एक पोरस भी तो रहता है हमारे अन्दर,
जो सिकन्दर को सिकन्दर नहीं रहने देता।"
मैं इन पंक्तियों के सम्मोहन में हूं, बस इन्हें पढ़े जाअ रहा हूं. धन्यवाद इस गजल के लिये.
द्विज जी नमस्कार,
आपके ग़ज़ल के क्या कहने उफ़ उफ्फ्फ्फ़ .... गज़ब की बात कही आपने ... हर शेर कहर बरपा रहा है ... मैं अदना क्या कहूँ .. अआप तो बिशिष्ट और उत्तम है .... ढेरो बधाई कुबूल करें....
अर्श
बहुत बहुत जोरदार ग़ज़ल द्विज जी की. मस्ती भरी, जीवन से भरपूर आज के समय पर बराबर चोट करती, खूबसूरत ग़ज़ल . द्विज जी जब जब लिखते हैं, जब जब उनकी शायरी पढने को मिलती है लगता है किसी तूफ़ान में बहते चले जा रहे हैं बहूत बहूत शुक्रिया
द्विजेन्द्र "द्विज" जी के यूँ ही थोड़े न कायल है..क्या गजब लिखा है.
ख़ुश्क़ आँखों में उमड़ आता है बादल बन कर,
दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
वाह क्या बात है जी.
धन्यवाद
'शोर अन्दर का…'
'आस्मां भी वो…'
'एक पोरस भी तो…'
'उनमें इक रेत के…'
बहुत ही ख़ूब!सभी एक से बढ़ कर एक हैं।
काफिया इक भी तो बाहर नहीं रहने देता,
हमको इक शे'र भी तो वो नहीं कहने देता
आप कहा कुछ छोड़ते हैं भाई जान कहने के लिए.....हर एक शेर में आपका चिर परिचित अंदाज ...गहरे तक सुलगता हुआ आदमी...
लाजवाब..........
Bhai Dwij ji
namaskar.
kai dinon ke baad aaj apke blog par aaya aur achanak itani sunder ghazal dekh man bag bag ho gaya. sabhi sher sunder aur lajawab kisaki alag se taarif karoon. Bahut bahut badhai. sath men Prakash Badal ji ko bhi dhanyawad ki apki sunder sunder ghazalon ko padane ka awassar de rahe hain.punah badhai sahit,
Chandrabhan Bhardwaj.
"एक पोरस भी तो रहता है हमारे अन्दर/जो सिकन्दर को सिकन्दर नहीं रहने देता"....द्विज जी की ये ही सब अदा जो है कि बस हम उनके मुरीद आह-वाह-उफ़्फ़्फ़ करते रह जाते हैं
उनकी एक और नयी गज़ल से मुलाकात करवाने के लिये शुक्रिया प्रकाश भाई....
आपकी यह नादिर ग़ज़ल पढ़ी, बहुत पसंद आई। हमेशा आपके कलाम में ख़यालात की
पुख़्तगी देखने के लायक़ होती है।
आस्माँ भी वो दिखाता है परिन्दों को नए,
हाँ, मगर उनपे कोई ‘पर’ नहीं रहने देता।
बहुत ख़ूब!
पूरी ग़ज़ल पढ़ कर मज़ा आ गया।
महावीर शर्मा
कोई ख़ुद्दार बचा ले तो बचा ले वरना,
पेट काँधों पे कोई सर नहीं रहने देता।
... अत्यंत प्रसंशनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।
शत-शत नमन !!
सादर
ख्याल
ज़ेह्न में और कोई डर नहीं रहने देता।
शोर अन्दर का हमें घर नहीं रहने देता।
कोई ख़ुद्दार बचा ले तो बचा ले वरना,
पेट काँधों पे कोई सर नहीं रहने देता।
एक पोरस भी तो रहता है हमारे अन्दर,
जो सिकन्दर को सिकन्दर नहीं रहने देता।
okgok बेहतरीन ग़ज़ल बेहतरीन अंदाज़ के साथ प्रस्तुत की आपने वाह वाहवा
बहुत खूब सर ,
हमारी दाद कबूल करे ,
हर शेर में एक अलग ही मजा है ।
आस्माँ भी वो दिखाता है परिन्दों को नए,
हाँ, मगर उनपे कोई ‘पर’ नहीं रहने देता।..... वाह
एक पोरस भी तो रहता है हमारे अन्दर,
जो सिकन्दर को सिकन्दर नहीं रहने देता।
हादिसों का ही धुँधलका–सा ‘द्विज’ आँखों में मेरी,
ख़ूबसूरत कोई मंज़र नहीं रहने देता।
युँ तो हर शेर कई बार पडा़ पर ये बहुत बहुत अच्छे लगे ।
सादर ,
हेम ज्योत्स्ना "दीप"
खुश्क आँखों में उमड़ आता है बादल बन कर
दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता
कोई खुद्दार बचा ले तो बचा ले वरना
पेट काँधों पे कोई सर नहीं रहने देता
एक इन्किलाब-सा बरपा करते हुए ये खूबसूरत अश`आर ...
ग़ज़ल, सुनने-पढने वालों तक खुद पहुँचती है ...
जिंदगी के बिलकुल करीब जा कर,maano उसे अपने अल्फाज़ में सलीके से ढाल दिया गया ho. .
द्विज साहब की यही खासियत है .... हमेशा .....
जिंदाबाद. . . . .
और ...
बादलजी आपका शुक्रिया इस पेशकश के लिए....
---मुफलिस---
कोई ख़ुद्दार बचा ले तो बचा ले वरना,
पेट काँधों पे कोई सर नहीं रहने देता।
भाई द्विज जी,
बहुत सुन्दर लिखा है ,लेकिन सच कहूँ तो अक्सर यहाँ आकर उसी द्विज की तलाश रहती है जिसने
दर्द के कांटे को ग़ज़लों में ढाल कर निकाला था और दूसरो का दम-ख़म पिघला देने वाले हादसे जिसकी हिम्मत बढ़ा गए थे.
आशा है उस 'द्विज' से आप शीघ्र ही भेंट करवाएंगे.
एक-एक शेर कैसे दिल में उतरता है...सच कहूं तो बहुत सुकून मिलता है आपकी गजलें पढ़कर...
एक पोरस भी तो रहता है हमारे अन्दर,
जो सिकन्दर को सिकन्दर नहीं रहने देता।
कमाल का लिखते हैं आप ..एक एक लफ्ज़ अपनी बात कह जाता है ..बहुत सुन्दर बहुत बढ़िया लगी यह शुक्रिया
काफिया इक भी तो बाहर नहीं रहने देता,
हमको इक शे'र भी तो वो नहीं कहने देता . aapki gazlon ki jitni tareef ki jae kam hai. agar kabhi waqt mil jae to mere blog par aa jaen.
Dwiz ji
Sadar namskaar,
bahut hi sunder gazal
aapki gazal ki tarif karne ki meri himmat nahi hai
aapse to seekh rahi hoon
aapki gazalen hamesha padti rahi hoon
alag tarah ke kafiya aur bhaut hi alag soch aapki gazalon main hamesha dekhi hai
ye sher khas kar pasand aaya
ख़ुश्क़ आँखों में उमड़ आता है बादल बन कर,
दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
Dwiz ji
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दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
Dwiz ji
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दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
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दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
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दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
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ख़ुश्क़ आँखों में उमड़ आता है बादल बन कर,
दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
bahut hi umda!!!!!
yah gazal nayaab gazal hai.
shukriya is prastuti ke liye.
बहुत बढ़िया रचना । इस पूरी रचना का हर भाग पढ़ने लायक है । बार-बार पढ़ा । खासकर ये पंक्तिया मुझे बहुत अच्छा लगा । आभार
उनमें इक रेत के दरिया–सा ठहर जाता है,
ख़ौफ़ आँखों में समन्दर नहीं रहने देता।
द्विज जी,
एक-एक शेर कैसे दिल में उतरता है....
ख़ुश्क़ आँखों में उमड़ आता है बादल बन कर,
दर्द एहसास को बंजर नहीं रहने देता।
waah क्या बात है...!!
एक पोरस भी तो रहता है हमारे अन्दर,
जो सिकन्दर को सिकन्दर नहीं रहने देता।
कमाल का लिखते हैं आप ...यही तो खासियत है आपकी...!!
द्विज जी,
एक बेहतरीन गज़लकार को मेरा सादर नमस्कार।
बहुत खूबसूरत गज़ल!
मगर किस शेर की बात करूं हर एक दूसरा लाजवाब कर देता है...
कोई ख़ुद्दार बचा ले तो बचा ले वरना,
पेट काँधों पे कोई सर नहीं रहने देता।
सादर
होली की ढेरो शुभकामनाएं।
dwij bhaai ko holi ki bahut bahut shubhkaamnaayein,,,,
होली की अनंत असीम व रंगीन शुभकामनाएं
कोई ख़ुद्दार बचा ले तो बचा ले वरना,
पेट काँधों पे कोई सर नहीं रहने देता।
जो शख्श ऐसा बेमिसाल शेर कह सकता है उसकी शायरी पर तबसरा करना मेरे बस की बात नहीं...मेरे बस में सिर्फ इस अजीम शख्शियत की शायरी पढना और वाह वा करना है...जो मैं शिद्दत से कर रहा हूँ...
नीरज
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