जो लड़ें जीवन की सब संभावनाओं के ख़िलाफ़।
हम हमेशा ही रहे उन भूमिकाओं के ख़िलाफ़।
जो ख़ताएँ कीं नहीं , उन पर सज़ाओं के ख़िलाफ़,
किस अदालत में चले जाते ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
जिनकी हमने बन्दगी की , देवता माना जिन्हें,
वो रहे अक्सर हमारी आस्थाओं के ख़िलाफ़।
ज़ख़्म तू अपने दिखाएगा भला किसको यहाँ,
यह सदी पत्थर—सी है संवेदनाओं के ख़िलाफ़।
सामने हालात की लाएँ जो काली सूरतें,
हैं कई अख़बार भी उन सूचनाओं के ख़िलाफ़।
ठीक भी होता नहीं मर भी नहीं पाता मरीज़,
कीजिए कुछ तो दवा ऐसी दवाओं के ख़िलाफ़।
आदमी से आदमी, दीपक से दीपक दूर हों,
आज की ग़ज़लें हैं ऐसी वर्जनाओं के ख़िलाफ़।
जो अमावस को उकेरें चाँद की तस्वीर में,
थामते हैं हम क़लम उन तूलिकाओं के ख़िलाफ़।
रक्तरंजित सुर्ख़ियाँ या मातमी ख़ामोशियाँ,
सब गवाही दे रही हैं कुछ ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
आख़िरी पत्ते ने बेशक चूम ली आख़िर ज़मीन,
पर लड़ा वो शान से पागल हवाओं के ख़िलाफ़।
‘एक दिन तो मैं उड़ा ले जाऊँगी आख़िर तुम्हें,
ख़ुद हवा पैग़ाम थी काली घटाओं के ख़िलाफ़।
मेरे हिस्से के डॉ. मेघ
5 weeks ago
44 comments:
कहां से आते हैं आपके पास ऐसे बेहतरीन खयाल...
वाह ! द्विज भाई ,गज़ल पढ्कर मज़ा आ गया.
विशेषकर ये दो शेर :
जो ख़ताएँ कीं नहीं , उन पर सज़ाओं के ख़िलाफ़,
किस अदालत में चले जाते ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
जिनकी हमने बन्दगी की , देवता माना जिन्हें,
वो रहे अक्सर हमारी आस्थाओं के ख़िलाफ़।
बधाई, यूं ही लिखते रहें, शुभकामनायें.
"ठीक भी होता नहीं मर भी नहीं पाता मरीज़,
कीजिए कुछ तो दवा ऐसी दवाओं के ख़िलाफ़।"
द्विज जी की गजलों का यह स्वर भी कम मारक नहीं.
धन्यवाद.
बहुत ख़ूब साहब! वाह!
जो लड़ें जीवन की सब संभावनाओं के ख़िलाफ़
हम हमेशा ही रहे उन भूमिकाओं के ख़िलाफ़..
बहुत ख़ूब धन्यवाद.
भाई बहुत बढ़िया .. बहुत उम्दा शेर ......
शुक्रिया इस ग़ज़ल को पेश करने का।
ये शेर तो लाजवाब है-
आख़िरी पत्ते ने बेशक चूम ली आख़िर ज़मीन,
पर लड़ा वो शान से पागल हवाओं के ख़िलाफ़।
--मानोशी
वाह!
यह मेरी मनपसंद बहर है जिसे आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर
एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है। हर शे'र पर मस्तिष्क कुछ सोचने के लिए
बाध्य हो जाता है और महसूस होता है कि यह ग़ज़ल सिर्फ़ मनोरंजन के ही लिए
नहीं है। जिन लोगों को तख़्खयुल और तग़ज़्ज़ुल की तलाश हो, यह ग़ज़ल अच्छी
मिसाल है। यह तो बड़ा मुश्किल है कि किस शे'र की तारीफ़ की जाए। हर शे'र
इस शे'र की ही तरह लाजवाब हैः-
आख़िरी पत्ते ने बेशक चूम ली आख़िर ज़मीन,
पर लड़ा वो शान से पागल हवाओं के ख़िलाफ़।
बधाई स्वीकारें।
महावीर
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
रक्तरंजित सुर्ख़ियाँ या मातमी ख़ामोशियाँ,
सब गवाही दे रही हैं कुछ ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
बहुत दम दार ग़ज़ल, मज़ा आ गया, सारी गज़लें एक से बढ़ कर एक हैं
जो ख़ताएँ कीं नहीं , उन पर सज़ाओं के ख़िलाफ़,
किस अदालत में चले जाते ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
kin shabdon men prashansa karoon,tay karna mushkil hai.
bahut arthpoorna evam uchch stariya rachna hai.
वाह...! द्विज जी नमन है आपको, जादू है आपकी लेखनी में एक एक शे'र उम्दा है ...
आख़िरी पत्ते ने बेशक चूम ली आख़िर ज़मीन,
पर लड़ा वो शान से पागल हवाओं के ख़िलाफ़।
वाह.....? sabd bezuban ho gage....
द्विज जी नमस्कार,
आप मेरे ब्लॉग पे आए मैं तो धन्य हो गया मेरा लिखा किर्तार्थ हो गया आभार कैसे ब्यक्त करूँ समाज नही आता .. आपके ग़ज़ल का तो मैं मुरीद हूँ ही .... आपका आशीर्वाद मिले यही चाहता हूँ आपका ढेरो आभार ....
अर्श
महावीर जी ने सब कह दिया और वैसे भी हमारी इतनी हैसियत कहां कि द्विज साहब की गज़ल पर कुछ कह सकूं
हम तो बस अभी डूबते-उतराते हैं इनमें..."जन-गण-मन" के पन्नों में
प्रकाशजी आप के दोनों हाथों में लड्डू हैं...एक में द्विज जी और दूसरे में नवनीत जी और आप दिल खोल कर इनका रसास्वादन हम पाठकों को करवाते हैं...द्विज जी के बारे में क्या कहूँ मेरे गुरु हैं और देखिये किस खूबसूरत अंदाज़ में उन्होंने अपने शेरों में ज़माने भर की बातें कह डाली हैं...उनका ये अंदाजे बयां निराला है...भाई वाह और वाह और वा...
नीरज
एक से एक प्रतिभाशील लेखक और साथ में सार्थक पाठक, आप सभी जब द्विज भाई की रचनाओं की प्रशंसा करते हैं तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है~ जाहिर है, जो असली लेख़क है, वो कितना ख़ुश होता होगा। नीरज जी को पिछले कुछ दिनों से तालाश कर रहा था, लेकिन मिले नहीं, आज अचानक फूट पड़े तो संतोष हुआ~ इसी प्रकार राजरिशी भाई भी काफी देर से आए, और अर्श भाई भी, लेकिन देर आयद दरुस्त आयद। आप लोगों के आने से मुझे और प्रोत्साहन मिलता है और मैं भविष्य में हिमाचल से उन सभी लेखकों के ब्लॉग बनाने के संकल्प को लेकर चला हूं जो अच्छा लिख रहें है। जब एक साथ सभी अच्छे लेखक टिप्पणी करते हैं, तो अच्छा लगता है। इस बार कवियत्री सुश्री हरकीरत हकीर भी आईं हैं और उनकी जो टिप्पणी आई है वो बेहद उल्लास से भरने वाली है। क्योंकि हरकीरत जी ख़ुद एक प्रतिभाशील कवियत्री हैं तो जाहिर है कि उनकी टिप्पणी हमारे लिए बहुत मायने रखती हैं।
इसी प्रकार विवेक जी, महेंद्र मिश्रा जी, मीत जी, विनय जी अरविंद चतुर्वेदी जी,हिमांशु जी,संजीव मिश्रा जी,घुघूती बासुती जी, अर्विंद चतुर्वेदी जी, दिगम्बर नासवा जी, आदि सभी लेखको ने हर बार की तरह इस बार भी प्रोत्साहित किया है। मैं उनका आभारी हूं और आप सभी को विश्वास दिलाता हूं कि द्विज भाई की एक से बेहतर रचना आपके समक्ष लाने का प्रयास करूंगा। साहित्यकार महावीर जी ने भी हर बार की तरह सारगर्भित टिप्पणी कर के प्रोत्साहित किया है। उनका भी आभार, और द्विज भाई का प्रोत्साहन करने आए सभी पाठकों और साहित्य प्रेमियों का आभार।
ज़ख़्म तू अपने दिखाएगा भला किसको यहाँ,
यह सदी पत्थर—सी है संवेदनाओं के ख़िलाफ़।
... अत्यंत प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
जो ख़ताएँ कीं नहीं , उन पर सज़ाओं के ख़िलाफ़,
किस अदालत में चले जाते ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
जिनकी हमने बन्दगी की , देवता माना जिन्हें,
वो रहे अक्सर हमारी आस्थाओं के ख़िलाफ़।
ज़ख़्म तू अपने दिखाएगा भला किसको यहाँ,
यह सदी पत्थर—सी है संवेदनाओं के ख़िलाफ़।
wah sachmuch bahut khub jitna suna tha usse badh kar paya.
Bhai Dwijendra ji, namaskar,
Aapki naio ghazal padi. Bahut achchhi lagi kuchh sher to bakai bahut sunder hain.
aakhiri patte ne beshak chum li aakhir zamin,
par lada vo shaan se pagal hawaon ke khilaf.
jo khatayen ki nahin un par sajaon ke khilaf,
kis adalat men chale jaate khudaon ke khilaf.
bahut sunder sher hain. badhai.
Chandrabhan Bhardwaj
द्विज भाई को नमस्कार ,
आजकल कई तरह के कामों में उलझा होने के कारण देर से पहुंचा ..क्षमा करें ...इतनी तारीफों के बाद बन्दे के लिए कुछ नहीं रहा बयान करने के लिए ..हाँ .........
पर लड़ा वो शान से पागल हवाओं के ख़िलाफ़
मुझे याद है के आपने ये शेर इस नाचीज़ की एक बेहद मामूली रचना पर टिपण्णी के रूप में दिया था.....
और मेरी रचना इस के भारीपन से दब गयी थी............और दिल में रह गयी थी एक अधूरी प्यास .......जो के आज इस ग़ज़ल को पढ़ कर बुझ गयी
शुक्रिया
और अगर कभी दोस्त की तुलिका अमावास उकेरने लगे अनजाने में तो अपनी इस नायाब लेखनी जिसे की वज्र कहना ज़्यादा ठीक होगा.......का प्रयोग ना कीजियेगा.....
बस कान में कह दीजियेगा.......
मनु
ज़ख़्म तू अपने दिखाएगा भला किसको यहाँ,
यह सदी पत्थर—सी है संवेदनाओं के ख़िलाफ़।
आख़िरी पत्ते ने बेशक चूम ली आख़िर ज़मीन,
पर लड़ा वो शान से पागल हवाओं के ख़िलाफ़।
सच हर शेर सोचने को मजबूर करता हैं। बहुत उम्दा लिखा हैं। आज पहली बार आना हुआ और अब तो आते रहेंगे। और ब्लोग का टेम्पलेट भी बहुत ही सुन्दर हैं।
i cannot explain in words sir.
your ghazals are very very good, heart-touching, smart like you and also great like you.
है द्विजेन्द्र ‘द्विज’ का बेहद ख़ूबसूरत ये ब्लाग
जिनकी ग़ज़लों से अयाँ है ज़िन्दगी का सोज़ो-साज़
उनकी उर्दू शायरी का है ये ‘बर्क़ी’, इम्तियाज़
कैफ़ो-सरमस्ती,तग़ज़्ज़ुल फ़िक्रो-फ़न सोज़ो-गुदाज़.
*********
है दिलकश द्विजेंद्र ‘द्विज’ का कलाम
जवाँ साल कवियों मे है उनका नाम
है अशआर में उनके सोज़े -दुरूँ
न हों क्यूँ वो मक़बूले हर ख़ासो-आम
वह सरशार हैं बाददए इश्क़ से
ख़ुलूसो - महब्बत है उनका पयाम
हिमाचल की रौनक़ हैं दरअसल वह
जहाँ हर जगह हुस्ने - फ़ितरत है आम
नुमायाँ है जो उनके अशआर से
हसीं वादियां, ख़ुशनुमा सुबहो- शाम
बहुत ख़ूबसूरत है उनका ब्लाग
नुमायाँ है उनका अदब में मुक़ाम.
डा. अदमद अली ‘बर्क़ी’ आज़मी
नई-दिल्ली
है दिलकश द्विजिंदर द्विज का कलाम
जवाँसाल कवियोँ मे है उनका नाम
है अशआर मेँ उनके सोज़े दुरूँ
न होँ क्यूँ वह मक़बूले हर ख़ासो आम
वह सरशार हैं बाददए इश्क़ से
ख़ोलूसो मोहब्बत है उनका पयाम
हिमाचल की रौनक़ हैं दरअसल वह
जहाँ हर जगह हुस्ने फ़ितरत है आम
नुमायाँ है जो उनके अशआर से
हसीँ वादियां, ख़ुशनुमा सुबहो शाम
बहुत ख़ूबसूरत है उनका ब्लाग
नुमायाँ है उनका अदब मेँ मुक़ाम
डा.. अहमद अली बर्की आज़मी
है द्विजेन्द्र ‘द्विज’ का बेहद ख़ूबसूरत ये ब्लाग
जिनकी ग़ज़लों से अयाँ है ज़िन्दगी का सोज़ो-साज़
उनकी उर्दू शायरी का है ये ‘बर्क़ी’, इम्तियाज़
कैफ़ो-सरमस्ती,तग़ज़्ज़ुल फ़िक्रो-फ़न सोज़ो-गुदाज़.
उम्दा....वाकई में. गज़ब. जारी रहें बिना अवरोध.
आपकी की रचनाओं का सरोकार सीधे आम आदमी से होता है यही कारण है की आपकी बात सीधे दिल में उतर जाती है.. सुन्दर गजल...
जो ख़ताएँ कीं नहीं , उन पर सज़ाओं के ख़िलाफ़,
किस अदालत में चले जाते ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
बहुत ही सुंदर आप की रचना की हर लाईन, हर शव्द बहुत गहरे जाता है.
धन्यवाद
द्विज जी
आप मेरे ब्लॉग पर आए, ये मेरा सोभाग्य है
आप को मेरी ग़ज़ल अच्छी लगी तो मैं मान सकता हूँ की मैं भी ठीक लिख सकता हूँ.
आप का बहुत बहुत धन्यवाद.
द्विज जी,
आधुनिक गजल में आपका जबाब नहीं है.. जिस तरह से आपने हिन्दी और उर्दू के लफ़्जों का सामंजस्य बिठाया है वह काविले तारिफ़ है.. ख्याल और भाव सोने पर सुहागा हैं.. खूबसूरत गजल के लिये बधाई
जो ख़ताएँ कीं नहीं , उन पर सज़ाओं के ख़िलाफ़,
किस अदालत में चले जाते ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
ज़ख़्म तू अपने दिखाएगा भला किसको यहाँ,
यह सदी पत्थर—सी है संवेदनाओं के ख़िलाफ़।
आख़िरी पत्ते ने बेशक चूम ली आख़िर ज़मीन,
पर लड़ा वो शान से पागल हवाओं के ख़िलाफ़।
बेहतरीन शेर हैं
आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
aap ne bahut sundar gajal likha hai,aap aisi hi sundar gajal likhte rahe,aisi meri subhkamna hai,aap kabhi mere blog ke follower baniye,aap ka swagat hai.
http://meridrishtise.blogspot.com
वाह... द्विज जी वाह... बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने..... वाह... इस प्रस्तुति के लिये बादल जी को भी साधुवाद.
kya baat hai..... har sher khoobsurat...khud par gussa aa raha hai ki is blog se ab tak vanchit kyo rahi....!
bahut khoob.....!
बहुत सुन्दर भाव हैं।
Man ko chu gayi..
Badhai.
dwiz sahab ki gazal padhwane ke liye prakash ji aap ko dhnywaad.
ek bahut hi khubsurat gazal hai--har sher umda laga...
aagey bhi aisee achchee gazalen padhwatey raheeyega.
ज़ख़्म तू अपने दिखाएगा भला किसको यहाँ,
यह सदी पत्थर—सी है संवेदनाओं के ख़िलाफ़।
bhaut hi gazal ke shabdon ka chayan milta hai aapki gazal padhne par
jaise hindi ka shabad kosh
har kadam par ek nayi bhavan aur unko kahne ke liye shabdon ka chayn achmabhit karta hai
aapse bhaut seekhna hai
umeed hai ki seekh paungi
जो ख़ताएँ कीं नहीं , उन पर सज़ाओं के ख़िलाफ़,
किस अदालत में चले जाते ख़ुदाओं के ख़िलाफ़।
पूरी गज़ल को कई बार पढ़ा जितनी तारीफ की जाये कम है ये शेर तो बहुत ही खूबसूरत हैं...बहुत-२ बधाई...
bahot umda khayaal hai!!is ka hal bhi to bataaen!!!
Mera blog visit karne par dhanyavaad!!
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वाह............
वाह......
हर शेर कई कई बार पड़ने वाला है ,
हर शेर में एक खुबसुरत ख्याल है ,
बेहतरीन
सादर
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