हज़ारों सदियों-सी लम्बी यही कथाएँ हैं
हर एक मोड़ पे जीवन के यातनाएँ हैं
इसीलिए यहाँ ऊबी सब आस्थाएँ हैं
पलों की बातें हैं पहरों की भूमिकाएँ हैं
सवाल सामने लाती है यही आज़ादी
‘बिछीं जो राहों में लाखों ही वर्जनाएँ हैं?’
दिखें हैं ख़ून के छींटे बरसती बूंदों में
ख़याल ज़ख़्मी हैं घायल जो कल्पनाएँ हैं
जहाँ से लौट के आने का रास्ता ही नहीं
वफ़ा की राह में ऐसी कई गुफ़ाएँ हैं
बस आसमान सुने तो सुने इन्हें यारो
पहाड़ जैसी दिलों में कई व्यथाएँ हैं
हसीन ख़्वाब मरेंगे नहीं यक़ीं जानो
उकेरती अभी सावन को तूलिकाएँ हैं
दुआ करो कहीं धरती पे भी बरस जाएँ
फ़लक़ पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
चांदनी रातें - भारत में रूस की बातें
5 weeks ago
17 comments:
हल्के न लीजिये शायारी यूँ 'मजाल',
कईयों को आप से बहुत आशाएं है.
Bahut bahut khoob ..
इसीलिए यहाँ ऊबी सब आस्थाएँ हैं
पलों की बातें हैं पहरों की भूमिकाएँ हैं
दिखें हैं ख़ून के छींटे बरसती बूंदों में
ख़याल ज़ख़्मी हैं घायल जो कल्पनाएँ हैं
जहाँ से लौट के आने का रास्ता ही नहीं
वफ़ा की राह में ऐसी कई गुफ़ाएँ हैं
जहाँ से लौट के आने का रास्ता ही नहीं
वफ़ा की राह में ऐसी कई गुफ़ाएँ हैं
वाह वाह जी बहुत सुंदर लगी आप की गजल. धन्यवाद
सभी जानते हैं कि कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कही ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता । फिर भी ख्वाबों के टुटने या अधूरे रहने पर लोग टूट जाते हैं तो ऐसे लोगों के दिलों में एक आस की किरण जगाती हैं निम्न पंक्तियां :-
हसीन ख़्वाब मरेंगे नहीं यक़ीं जानो
उकेरती अभी सावन को तूलिकाएँ हैं
दुआ करो कहीं धरती पे भी बरस जाएँ
फ़लक़ पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं।
प्रियवर द्विजेन्द्र जी "द्विज" साहब
क्या रचना है आपकी भी !
हर शे'र मुकम्मल ग़ज़ल के मानिंद …
जहां से लौट के आने का रास्ता ही नहीं
वफ़ा की राह में ऐसी कई गुफ़ाएं हैं
बहुत प्यारा शे'र है …
बहुत उम्दा !
दुआ करो कहीं धरती पॅ भी बरस जाएं
फ़लक़ पॅ झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
गिरह बहुत ख़ूबी के साथ बांधी है जनाब !
मुबारक हो !
*** *** *** *** *** ***
अभी मेरे ब्लॉग पर भी इसी तरही के लिए लिखी ग़ज़ल एक ख़ूबसूरत राजस्थानी रचना के साथ लगी है । दोनों रचनाएं गा'कर भी लगाई हैं ,
बड़ी मेहरबानी , पढ़ - सुन कर अपनी राय तो दें !
समय निकाल कर आएं …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बहुत उम्दा रचना
बस इतना ही कहूँगी कि उनकी शायरी के आगे नतमस्तक हूँ। बहुत दिनो नेट से दूर रही इस लिये इस गज़ल को देख नही पाई। शुभकामनायें
पलों की बातें हैं, पहरों की भूमिकाएँ…
वाह! वाह-वाह!!
जहाँ से लौट के आने का रास्ता ही नहीं
वफ़ा की राह में ऐसी कई गुफ़ाएँ हैं
गजब के शेर गढ़े है..द्विज जी मैं इन ग़ज़लों को पहले एक बार पढ़ चुका हूँ पर इतने लाज़वाब हैं कि बार बार पढ़ने का मन होता है....बहुत बहुत बधाई
इसीलिए यहाँ ऊबी सब आस्थाएँ हैं
पलों की बातें हैं पहरों की भूमिकाएँ हैं
हज़ारों सदियों-सी लम्बी यही कथाएँ हैं
हर एक मोड़ पे जीवन के यातनाएँ हैं
abhut ashaar. bahut khoob vaah! vaah!
खूबसूरत गज़ल....हर शेर लाजवाब!
शुभकामनाएं...
Bemissal nageenedari ke liye daad diye bina rah paana mushkil hai
उसे है नाज़ पली उसके घर में वीरानी
मुझे है नाज़ पली मेरे घर खिज़ाएँ हैं
ये कैसा दिल के समंदर में उठ रहा तूफाँ
कि जैसे टूटी मेरी सारी आस्थाएँ हैं
har pankti par aah nikaltee hai ...jaanain jehan main dabee kitnee vyathayain hain
जहाँ से लौट के आने का रास्ता ही नहीं
वफ़ा की राह में ऐसी कई गुफ़ाएँ हैं
वाह वाह क्या बात है...........
सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत भाव
विजयदशमी मुबारिक हो
नववर्ष 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
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