हज़ारों सदियों-सी लम्बी यही कथाएँ हैं
हर एक मोड़ पे जीवन के यातनाएँ हैं
इसीलिए यहाँ ऊबी सब आस्थाएँ हैं
पलों की बातें हैं पहरों की भूमिकाएँ हैं
सवाल सामने लाती है यही आज़ादी
‘बिछीं जो राहों में लाखों ही वर्जनाएँ हैं?’
दिखें हैं ख़ून के छींटे बरसती बूंदों में
ख़याल ज़ख़्मी हैं घायल जो कल्पनाएँ हैं
जहाँ से लौट के आने का रास्ता ही नहीं
वफ़ा की राह में ऐसी कई गुफ़ाएँ हैं
बस आसमान सुने तो सुने इन्हें यारो
पहाड़ जैसी दिलों में कई व्यथाएँ हैं
हसीन ख़्वाब मरेंगे नहीं यक़ीं जानो
उकेरती अभी सावन को तूलिकाएँ हैं
दुआ करो कहीं धरती पे भी बरस जाएँ
फ़लक़ पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
चांदनी रातें - भारत में रूस की बातें
5 weeks ago